नवरात्रि की तृतीया तिथि को माँ चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है।

  • October 09, 2021
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  • by Admin

मां चंद्रघंटा की उपासना करके साधक अपने पापों का प्रायश्चित करता है जिससे उसके समस्त कष्ट और बाधाएं ख़त्म हो जाती हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक पराक्रमी और निर्भय बनता है। मां अपने भक्तों की सभी नकारात्मक शक्तियों और प्रेतबाधा से रक्षा करती हैं। इनकी उपासना से साधक में वीरता और निर्भयता के गुणों के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का भी विकास होता है। उसके मुख, नेत्र और संपूर्ण काया का भी विकास होता है। मां चंद्रघंटा की आराधना से साधक तृष्णा और लोभ पर विजय प्राप्त कर समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्त हो जाता है।

इस दिन की पूजा में दूध की प्रधानता होती है। इसलिए पूजन के बाद ब्राह्मणों को दूध देना उचित माना जाता है। इस दिन सिंदूर लगाने का भी रिवाज है। मां चंद्रघंटा को दूध और दूध से बनी चीज़ें बहुत पसंद होती हैं इसलिए उन्हें दूध और मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयस्कर माना गया है। इसके अलावा मां को लाल सेब ज़रूर चढ़ाएं।

जब भगवान शिव ने देवी से कहा कि वे किसी से शादी नहीं करेंगे, तब देवी को यह बात बहुत ही बुरा लगा। देवी की यह हालत ने भगवान को भावनात्मक रूप से बहुत ही चोट पहुँचाया। इसके बाद भगवान अपनी बारात लेकर राजा हिमावन के यहाँ पहुँचे। उनकी बारात में सभी प्रकार के जीव-जंतु, शिवगण, भगवान, अघोरी, भूत आदि शामिल हुए थे।

इस भयंकर बारात को देखकर देवी पार्वती की माँ मीना देवी डर के मारे बेहोश हो गईँ। इसके बाद देवी ने परिवार वालों को शांत किया, समझाया-बुझाया और उसके बाद भगवान शिव के सामने चंद्रघण्टा रूप में पहुँचीं। उसके बाद उन्होंने शिव को प्यार से समझाया और दुल्हे के रूप में आने की विनती की। शिव देवी की बातों को मान गए और अपने आप को क़ीमती रत्नों से सुसज्जित किया।

देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र
रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

नवरात्रि आपके लिए और आपके परिवार के लिए ख़ास हो और देवी स्कंदमाता की कृपा आप सभी के ऊपर बरसेगी।
नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएँ!




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